ADVERTISEMENTS:
Read this article in Hindi to learn about the three main steps involved in scientific method for the study of living beings. The steps are: 1. Observations & Identification of Problem 2. Hypothesis 3. Experiment.
आप जानते हैं कि वैज्ञानिक-पद्धति द्वारा अध्ययन विभिन्न क्रमिक पदों के अन्तर्गत होता है । ये विभिन्न पद हैं- अवलोकन, समस्या की पहचान, परिकल्पना, परिकल्पना के आधार पर प्रयोग डिजाइन करना एवं निष्कषों पर पहुँचना ।
इन पदों के आधार पर वैज्ञानिक पद्धति का प्रदर्शन कुछ प्रयोग करके देखा जा सकता है । यहाँ नमूने के तौर पर एक प्रयोग दिया जा रहा है । आप कोई अन्य उपयुक्त प्रयोग/गतिविधि का चुनाव भी कर सकते हैं ।
Step # 1. अवलोकन एवं समस्या की पहचान (Observations & Identification of Problem):
ADVERTISEMENTS:
हम सब देखते हैं कि विशेष ऋतु या मौसम में विभिन्न प्रकार के जन्तु एकाएक दिखाई पड़ते हैं, जैसे- वर्षा-ऋतु आने पर पानी भरे डबरों में मेंढक या गोबर अथवा सड़ते हुए माँस पर इल्लियाँ तथा मिट्टी की सतह पर वीर-बहूटी, कनखजूरा या सहस्त्रपाद (millepede) जैसे जन्तुओं का दिखलाई देना आदि ।
अनेक लोग इन अवलोकनों के आधार पर सोचते एवं मानते हैं कि ये जीव-जन्तु डबरों के जल में या गोबर में या भूमि में अपने आप ही जन्म लेते हैं । क्या वास्तव में जीव-जन्तु अपने आप पैदा होते हैं ? या फिर उनका जन्म ही अन्य जीवधारियों की तरह अपने जनक-जन्तु (parent animals) से होता है ?
Step # 2. परिकल्पना (Hypothesis):
जीव-विज्ञान के विद्यार्थी अच्छी तरह से जानते हैं कि जीव-जन्तु अपने आप पैदा नहीं होते । अर्थात् उनका जन्म अलैंगिक या लैंगिक जनन द्वारा ही होता है । इसे सिद्ध करने के लिए मक्खी के जीवन-चक्र से सम्बन्धित निम्नानुसार प्रयोग किया जा सकता है ।
Step # 3. प्रयोग (Experiment):
(a) उद्देश्य:
ADVERTISEMENTS:
मक्खी के जीवन-चक्र का अध्ययन ।
(b) सामग्री:
टीन के दो छोटे डिब्बे, कागज, ताजा गोबर, हैंड लैस, सुई या आलपिन ।
(c) विधि:
i. टीन के दो पुराने डिब्बे लीजिए । (डिब्बों के स्थान पर आइसक्रीम के कप या मिट्टी के कुल्हड़ भी ले सकते हैं) । अब एक डिब्बे पर ‘क’ एवं दूसरे पर ‘ख’ का लेबल लगा दीजिए ।
ii. कोई गाय या भैंस गोबर कर रही हो तब उस पर मक्खी बैठने के पहले थोड़ा-सा ताजा गोबर उठा लें और उसका कुछ हिस्सा ‘क’ डिब्बे में एवं कुछ हिस्सा ‘ख’ डिब्बे में रख दें ।
iii. ‘क’ डिब्बे के मुँह पर तुरन्त धागे या रबर के छल्ले से कागज कसकर बाँध दें । इस कागज पर आलपिन से कुछ छेद कर दें ताकि हवा अन्दर आ-जा सके किन्तु मक्खी अन्दर न जा पाये ।
iv. ‘ख’ डिब्बे को मक्खियों को गोबर पर बैठने दीजिए । यदि तत्काल मक्खी भी न बैठे तो लगभग 1/2 से 1 घण्टे तक डिब्बे को खुला छोड़े, मक्खी जरूर बैठेगी । जैसे ही मक्खी गोबर पर बैठे आप देखिए कि उसके पिछले हिस्से से बहुत छोटी-छोटी सफेद चीज निकलती हैं । ये ही मक्खी के अंडे हैं । एक हैंडलेंस से गोबर का हिस्सा देखें एवं अंडों के आकार आदि का अवलोकन कीजिए ।
v. अब ‘ख’ डिब्बे को भी ‘क’ की ही तरह कागज से बन्द कर दें तथा उस पर भी आलपिन से छोटे-छोटे छेद कर दें । अब इन डिब्बों को प्रयोगशाला में किसी सुरक्षित स्थान पर अगले 8-10 दिनों तक अवलोकन हेतु रख दीजिए ।
ADVERTISEMENTS:
vi. प्रतिदिन दोनों डिब्बों को थोड़ा-सा खोलकर कुछ पानी की बूंदे डालें ताकि गोबर में नमी बनी रहे किन्तु इस बात की सावधानी रखें कि ‘क’ डिब्बे को गोबर पर मक्खी न बैठने पाये । दोनों डिब्बों के गोबर पर ध्यान से अवलोकन करें ।
vii. प्रयोग आरम्भ करने के दूसरे या तीसरे दिन ही ‘ख’ डिब्बे में सफेद इल्लियों जैसे डिम्भ या लार्वा (larva) दिखाई देंगे । जबकि ‘क’ डिब्बे में डिम्भ या लार्वा नहीं होंगे । यदि दूसरे या तीसरे दिन ‘ख’ डिब्बे में गोबर की सतह पर लार्वा न दिखें तो गोबर को सुई या आलपिन से थोड़ा कुरेदो, लार्वा अवश्य दिखलाई देंगे ।
viii. प्रतिदिन अवलोकन करने पर आप देखेंगे कि ‘ख’ डिब्बे में लार्वा का आकार बढ़ता जाता है । चौथे-पाँचवें दिन वे थोड़ा छोटे एवं मोटे होकर एक स्थान पर सुस्त होकर पड़े रहते हैं । इन्हें प्यूपा (pupa) अवस्था कहते हैं । आप एक लार्वा एवं एक प्यूपा की रचना का अध्ययन एक हैंडलैंस से कीजिए ।
ix. लगभग 7-8 दिनों में प्यूपा से शिशु-मक्खी (imago) निकलती है, प्यूपा के रिक्त खोल गोबर में देखे जा सकते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
x. ‘क’ डिब्बे के गोबर में लार्वा, प्यूपा या मक्खी नहीं दिखाई देती ।
निष्कर्ष:
उक्त प्रयोग एवं उसके अवलोकनों से निम्न निष्कर्ष निकलते हैं:
(1) ‘क’ डिब्बे में इल्ली या अन्य अवस्थाओं का न दिखना स्वत: जनन के विचार को निरस्त करता है । इस डिब्बे के गोबर पर मक्खी को बैठने नहीं दिया गया था अर्थात् अंडे नहीं थे ।
ADVERTISEMENTS:
(2) ‘ख’ डिब्बे के गोबर में मक्खी के अंडों से इल्ली एवं प्यूपा तथा शिशु मक्खी का उत्पन्न होना दर्शाता है कि जन्तुओं का जन्म उनके जनक से ही होता है ।
(3) ‘ख’ डिब्बे में अंडे से लेकर शिशु-मक्खी के जन्म तक की अवस्थाएँ उसके जीवन-चक्र को दर्शाती हैं ।
वयस्क मक्खी ® अण्डा ® लार्वा ® प्यूपा ® शिशु मक्खी
↑———————————————————————————-↓
ADVERTISEMENTS:
(4) ‘क’ डिब्बे को तुलना के प्रावधान हेतु रखा गया था । ‘क’ डिब्बे में अन्य सभी परिस्थितियाँ ‘ख’ डिब्बे के समान ही थीं केवल उसके गोबर में मक्खी को प्रवेश नहीं करने दिया गया था । वैज्ञानिक पद्धति में किए गए जाने वाले प्रयोगों की तुलना के लिए ऐसे नियंत्रण प्रयोगों (Control) का निष्कषों हेतु अत्यधिक महत्व होता है ।
उपरोक्त प्रयोग विज्ञान की पद्धति के समस्त पदों को प्रदर्शित करता है । एक अवलोकन के आधार पर समस्या की पहचान एवं समस्या के उत्तर हेतु अनेक प्रकार की परिकल्पनाओं का जन्म लेना एवं उसके अनुसार प्रयोग निर्मित कर प्रयोग करना एवं अन्तत: उन प्रयोगों से निष्कषों पर पहुँचना ही वैज्ञानिक पद्धति कहलाती है ।