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Read this article in Hindi to learn about the nature and diversity of stimulus that arouses actions in a human body.
सामान्य रूप से उद्दीपक (Stimulus) से अभिप्राय उन सभी कारकों, वस्तुओं एवं घटनाओं से होता है, जिनके द्वारा मनुष्य प्रभावित होता है । किन्तु उद्दीपक का अभिप्राय वैज्ञानिक दृष्टि से कुछ अलग बताया गया है ।
रेवर ने उद्दीपक को इस प्रकार परिभाषित किया है:
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उद्दीपक से अभिप्राय, ”कोई वस्तु (अर्थात् कोई भी घटना किसी वस्तु संप्रत्यय या प्रत्याक्षित वस्तु में परिवर्तन आन्तरिक या बाह्य) जो व्यक्ति पर इस प्रकार का प्रभाव डालता है, जिससे व्यवहार में पहचानने योग्य परिवर्तन होता है ।”
यदि हम इस आसान परिभाषा का विश्लेषण करें तो हमें उद्दीपक के स्वरूप के विषय में निम्नलिखित तथ्य प्राप्त होते हैं:
(1) उद्दीपक के वर्ग में किसी भी वस्तु या घटना को रखा जाता है । इस शर्त के साथ कि उससे व्यक्ति के व्यवहार में पहचानने योग्य परिवर्तन हो । उदाहरणार्थ – किसी भी प्रकार के शोर को सुनकर प्राय: व्यक्ति उस ओर सिर घुमा लेता है । यहाँ ‘शोर’ एक उद्दीपक का उदाहरण है, जो कि प्राणी में पहचानने लायक परिवर्तन (सिर घुमाना) कर रहा है ।
(2) उद्दीपक का स्वरूप आन्तरिक एवं बाह्य किसी भी प्रकार का हो सकता है । उपरोक्त उदाहरण में, ‘शोर’ एक बाह्य श्रेणी का उद्दीपक है । उद्दीपक का स्वरूप आन्तरिक भी होता है ।
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उदाहरणार्थ – व्यक्ति के सिर में दर्द हो रहा है, वह व्याकुल नजर आने लगता है तथा दर्द के बढ़ने पर वह चिल्लाने भी लगता है । यहाँ ‘दर्द’ एक आन्तरिक वर्ग का उद्दीपक है, जो कि मनुष्य में कुछ प्रत्यक्षणीय या पहचानने योग्य परिवर्तन कर रहा है ।
इससे स्पष्ट होता है, कि उद्दीपक मनुष्य को प्रभावित करने वाला एक कारक (Factor) होता है । जिससे व्यक्ति में कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं, जिसे पहचाना या जिनके बारे में जाना जा सकता है । यूँ तो मनोवैज्ञानिकों ने उद्दीपक (Stimulus) को कोई दृष्टिकोणों से उसके कई रूप बतलाये हैं, किन्तु सामान्य रूप से उसके पाँच प्रकार ही हैं, जो अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं:
(1) दृष्टि उद्दीपक (Visual Stimulus):
दृष्टि उद्दीपक से अभिप्राय ऐसे उद्दीपक से होता है, जिसे व्यक्ति देख सकता है और देखने पर व्यक्ति मे पहचानने लायक परिवर्तन होता है । जैसे – कमरे में बल्व का जलना एक दृष्टि उद्दीपक है, क्योंकि बल्व को जलने पर प्राणी का ध्यान उस ओर आकर्षित हो जाता है तथा उससे स्पष्ट कुछ परिवर्तन भी हो सकता है । दृष्टि उद्दीपक का ग्राहक (Receptor) आँख होता है ।
(2) श्रवण उद्दीपक (Auditory Stimulus):
श्रवण उद्दीपक से अभिप्राय ऐसे उद्दीपक से होता है, जिसे प्राणी सुनता है, जिससे उसमें कुछ पहचानने लायक परिवर्तन होता है । जैसे – किसी भी प्रकार की आहट सुनकर व्यक्ति में कुछ परिवर्तन; जैसे – सतर्क हो जाना उस ओर देखना उस ओर सिर घुमाना आदि होता है । यहाँ ‘आवाज’ एक श्रवण उद्दीपक का उदाहरण है, तथा इसके ग्राहक (Receptor) को ‘कान’ कहा जाता है ।
(3) स्पर्श उद्दीपक (Touch Stimulus):
स्पर्श उद्दीपक ऐसे उद्दीपक को कहा जाता है, जैसे व्यक्ति किसी के छूने पर कुछ अनुभव करता है । इस उद्दीपक का ग्राहक त्वचा (Skin) होता है । जैसे यदि हमारा हाथ किसी ठण्डी वस्तु से स्पर्श होता है, तो हमें यह ज्ञात होता है कि वह वस्तु ठण्डी है, तो व्यक्ति उस वस्तु से अपना हाथ दूर कर लेता है ।
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(4) स्वाद उद्दीपक (Gustatory Stimulus):
स्वाद उद्दीपक उस उद्दीपक को कहा जाता है, जिसे ग्रहण करने पर व्यक्ति किसी प्रकार के स्वाद का अनुभव करता है । इसका ग्राहक व्यक्ति के जीभ पर स्वाद की कलियाँ (Taste Buds) होती हैं । जैसे – व्यक्ति जब अपने जीभ पर नमक के कुछ कण रखता है, तो उसे नमकीन स्वाद का अनुभव होता है । यहाँ नमक के कण स्वाद उद्दीपक का उदाहरण है ।
(5) घ्राण उद्दीपक (Olfactory Stimulus):
घ्राण उद्दीपक ऐसा उद्दीपक होता है, जब व्यक्ति सूँघता है, तो उसमें पहचानने योग्य परिवर्तन उत्पन्न करता है । जब व्यक्ति किसी फूल या इत्र को सूँघता है, तो उसे एक विशेष अनुभूति होती है । इस उद्दीपक का ग्राहक नाक होता है । यहाँ फूल या इत्र की सुगन्ध एक घ्राण उद्दीपक का उदाहरण है ।
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स्पष्टत:
उद्दीपक के पाँच प्रमुख सामान्य प्रकार होते हैं, जिनका व्यक्ति प्रत्यक्षण करता है । आपने देखा होगा कि यदि कोई आपसे आपके द्वारा देखी-सुनी चीजों के विषय में पुष्टि करना चाहता है, कि आप कैसे कह सकते हैं, कि आपके स्कूल कॉलेज घर व अन्य स्थान पर इस प्रकार की वस्तुएँ अथवा अन्य चीजें हैं? आपका उत्तर स्वत: यही होगा कि ऐसा मैं इसलिए कह सकता हूँ कि मैंने ऐसा देखा है, सुना है, महसूस किया है आदि ।
आप जानते हैं, कि ऐसा क्यों होता है? ऐसा आपकी ज्ञानेन्द्रियों के कारण होता है, जो बाहरी एवं आन्तरिक परिवेश को देखने व समझने में सहायक होती हैं, ज्ञानेन्द्रियों द्वारा संग्रहीत सूचनाओं का एकत्रीकरण होता है, जो समस्त ज्ञान का केन्द्रबिन्दु होती है । इस तथ्य को संवेदना (Sensation) के अन्तर्गत समझ सकते हैं ।