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Read this article in Hindi to learn about the mechanism of ear in a human body.
1. श्रवणक्रिया (Hearing):
वायु में से उत्पन्न हुई कम्पनाओं या तरंगों को ग्रहण करना कर्ण का काम है । जब ये तरंगें कर्णपटल से टकराती हैं । तो उसमें कम्पनाएँ होने लगती हैं ।
इसका प्रमुख श्रेय कॉरटाई के अंग को होता है । प्रत्येक ध्वनि तरंगें हवा में चारों ओर फैलती हैं, ध्वनि तरंगें कर्ण पिन्ना से टकराकर कान की नली में आगे की ओर बढ़ती हैं, तथा तने हुए परदे से टकराकर इसमें कम्पन उत्पन्न करती हैं ।
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यही कम्पन क्रमश: तीनों कर्ण अस्थियों से होती हुई अन्त: कर्ण तक पहुँचती है । अन्त: कर्ण में यह कॉरटाई के अंग में भी कम्पन करती है । इससे कॉरटाई के अंग श्रवण संवेदना की प्रेरणा को स्थापित कर देती है । ये प्रेरणाएँ मस्तिष्क को भेजी जाती हैं, तब मस्तिष्क प्रतिक्रिया के फलस्वरूप प्रेरणा करता है ।
2. संतुलन क्रिया (Equilibrium):
शरीर को संतुलित बनाये रखने का कार्य कान का एक प्रमुख कार्य है । कान का यह कार्य अच्छे-चन्द्राकार नलिकाओं की ऐम्पुला (Ampulla) करती है । संतुलन संवेदना दो प्रकार की होती है-एक स्थिर अवस्था की तथा दूसरी गति की अवस्था में ।
स्थिर अवस्था में संवेदना का सम्बन्ध विशेषत: सिर की स्थिति के परिवर्तन से होता है । जब सिर झुकता, मुड़ता या उल्टा हो जाता है, तो ऐम्पुला में स्थित संवेदी रोम संवेदित हो जाते हैं ।
ये संवेदनाएँ मस्तिष्क में पहुँचती हैं । इसी प्रकार हम लोग लिफ्ट में चढ़ने-उतरने रेल या मोटर के धक्कों आदि में इस संवेदना से प्रभावित होते हैं और हमें मितली या उल्टी का आभास होने लगता है । सिर को झुका लेने से यह संवेदना कम हो जाती है, गति एवं गमन के समय शरीर का संतुलन अच्छे-वृताकार नलियाँ करती हैं ।
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शरीर की गति के अनुसार ही इन नलिकाओं में भरे एन्डोलिस्फ में भी गति होती है । एन्डोलिम्फ के हिलने-डुलने से एम्मुला की संवेदी कोशिकाएँ उत्तेजित हो जाती हैं । यही उत्तेजना श्रवण तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचती हैं तथा मस्तिष्क फलस्वरूप प्रेरणा देता है, जिससे गति के समय भी शरीर का संतुलन बिगड़ने न पाये या बिगड़ने पर वापस ठीक हो जाये ।