ADVERTISEMENTS:
Read this article in Hindi to learn about the concept of cultural and ecological development in humans.
व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है, वही उसकी वातावरणीय परिस्थितियों की ओर संकेत करता है । बोरिंग लैंगफील्ड तथा वेल्ड के विचारानुसार, “जीन्स के अतिरिक्त व्यक्ति को प्रभावित करने वाली वस्तु परिस्थिति है….| एक व्यक्ति के वातावरण से आशय उन समस्त उद्दीपकों के योग से है, जिन्हें वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है ।”
यहाँ वातावरण से तात्पर्य उन समस्त बाहरी शक्तियों, प्रभावों, परिस्थितियों आदि से है, जो प्राणी के व्यवहार शारीरिक तथा मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं । वातावरण का आशय दो प्रकार की परिस्थितियों से जुड़ा है- भौतिक परिस्थितियाँ (Physical Circumstances) तथा मनोवैज्ञानिक परिस्थितियाँ (Psychological Circumstances) |
ADVERTISEMENTS:
भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार के पर्यावरण में व्यक्ति के व्यवहार तथा शारीरिक व मानसिक परिस्थितियो की मुख्य भूमिका रहती है, जो इन सबको प्रभावित भी करती है । यहाँ भौतिक वातावरण जलवायु व अन्य आवश्यक स्पर्श व देखी जाने वाली वस्तुओं की ओर संकेत करता है, जबकि मनोवैज्ञानिक वातावरण व्यक्ति के व्यवहार को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से प्रभावित करता है ।
पारिस्थितिकीय प्रभाव (Ecological Effects):
मानव के शारीरिक एवं मानसिक विकास का सम्बन्ध उसके स्वास्थ्य व पर्यावरण से होता है । स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं पोषणयुका आहार एवं साफ सफाई अत्यधिक मुख्य होती है, जबकि मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यदि इनके स्वास्थ्य को देखा जाए तो इनकी विभिन्न अदितों एवं व्यवहार की बातें सम्मिलित हो जाती हैं ।
मानवीय विकास में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकीय दोनों ही प्रकार का महत्व है, जैसा कि पूर्व में भी कहा है, कि पर्यावरण हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के अतिरिक्त हमारी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं एवं व्यवहारों को भी प्रभावित करता है । मानव जीवन में पर्यावरण का अत्यधिक महत्व है ।
ADVERTISEMENTS:
वातावरण में दबाव उत्पन्न करने वाली कुछ दशाएँ जैसे शोर प्रदूषण, भीड़ आदि सभी मानव विकास को बाधित करती हैं । कुछ प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य के नियन्त्रण से बाहर होती हैं ।
इसलिए मनोवैज्ञानिक ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग ऐसे पहलुओं से पर्यावरण उन्मुख व्यवहारों को बढ़ावा देता है, तथा हिंसा एवं भेद भाव को कम करने के साथ सकारात्मक स्वास्थ्य सम्बन्धी अभिवृत्तियों को विकास की ओर उन्मुख करता है ।
मानव जीवन को पर्यावरण अत्यधिक प्रभावित करता है । मानव विकास तथा पर्यावरण के मध्य का सम्बन्ध मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । हमारे चारों ओर के वातावरण में भौतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ पर्यावरण से सम्बन्धित हैं ।
मनुष्य के बाहर जो भी शक्तियाँ हैं, उनके अनुसार व्यक्ति अनुक्रिया करता है, जो कि मूलत: पर्यावरण पर निर्भर होती है । पर्यावरण को उद्दीपक स्थिति या स्रोत तथा व्यवहारों की पृष्ठभूमि में स्वीकार किया गया है, जिनके अनुसार मानव अनुक्रिया करता है । वे मूलत: पर्यावरण पर निर्भर होते हैं, तथा मानव विकास में सहयोगी होते हैं ।
पर्यावरणीय निर्धारक (Environmental Determinants):
मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण को अपनी सुविधाओं के लिए परिवर्तित किया है, जिससे मानव विकास में कुछ बाधक तत्व उत्पत्र हुए हैं ।
इन तत्वों को पर्यावरणीय निर्धारकों के रूप में वर्णित किया जा सकता है:
ADVERTISEMENTS:
(1) वैकासिक समानता (Development Resemblance):
ADVERTISEMENTS:
इस सन्दर्भ में सोरेन्सन लिखते है, कि ”बुद्धिमान माता-पिता के बालक बुद्धिमान, सामान्य माता-पिता के बालक सामान्य तथा मन्दबुद्धि माता-पिता के बालक मन्दबुद्धि के होते हैं । इसी प्रकार बालक का विकास माता-पिता के समान ही होता है । यही वैकासिक समानता का निर्धारक है ।”
ADVERTISEMENTS:
(2) विभिन्नता सम्बन्धी निर्धारक (Variation Related Determinants):
इसके अनुसार बालक का विकास माता-पिता के समान न होकर कुछ भिन्न प्रकार से होता है । उनमें मानसिक व शारीरिक भिन्नता पायी जाती है, इस सन्दर्भ में सोरेन्सन लिखते हैं, कि ”इस भिन्नता का कारण माता-पिता के उत्पादक कोषों की विशेषताएँ हैं । उत्पादक कोषों में विभिन्न जीन्स होते हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रकार से मिलकर एक-दूसरे से भिन्न बालकों का निर्माण करते हैं ।”
(3) बीजकोष की निरन्तरता (Continuity of Germplasm):
ADVERTISEMENTS:
बीज मैन के अनुसार:
“बीजकोष जो बालक को जन्म देता है, वह कभी भी नष्ट नहीं होता है । बीजकोष का कार्य मात्र उत्पादक कोषों का निर्माण करना है । जो बीजकोष बालक को अपने माता-पिता से प्राप्त होता है, उसे वह दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित कर देता है । इस प्रकार बीजकोष का वैकासिक क्रम अनेक पीढ़ियों तक चलता रहता है ।”
(4) मेण्डल का सम्प्रत्यय (Concept of Mendel):
इस निर्धारक के अनुसार वर्णसंकर वस्तुएँ या प्राणी मूलभूत अथवा सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती हैं । मेण्डल ने कुछ मटर के बीच अपने खेत में बोए जो कि वर्णसंकर जाति के थे । वे निरन्तर उन्हीं फलियों से प्राप्त बीजों को बोते रहे । अन्तत: उन्हें शुद्ध मटर की जाति प्राप्त हुई ।
ADVERTISEMENTS:
इस सम्बन्ध में बी.एन.झा ने कहा कि, ”जब वर्णसंकर अपने माता-पिता या पिता उत्पादक कोषों की रचना करते हैं, तब वे मुख्य गुणों से परिपूर्ण माता-पिता के समान शुद्ध जाति को जन्म देते हैं ।”
प्रत्यागम सम्बन्धी निर्धारक (Regression Related Determination):
सोरेन्सन के अनुसार, ”अत्यधिक तीव्र बुद्धि वाले माता-पिता से कम तीव्र बुद्धि वाले तथा निम्न कोटि के माता-पिता से कम निम्न कोटि के बालक होने की प्रवृत्ति ही प्रत्यागमन है ।” अत: इस निर्धारक के अनुसार बालक में अपने अभिभावक के गुणों से विपरीत गुण पाये जाते हैं ।
इस प्रकार उपर्युक्त निर्धारकों के अनुसार वातावरणीय अथवा पारिस्थितिकीय विकास क्रम का स्पष्टीकरण हो जाता है, जो कि मानव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं ।