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Here is an essay on ‘Heredity’ especially written for school and college students in Hindi language.
व्यक्तिकेब्यक्तित्व निर्माण एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में एक मुख्य कारक आनुवंशिकता अथवा वंशानुक्रमण भी है । अंग्रेजी भाषा में इसे हेरेडिटी (Heredity) पुकारा जाता है । इसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द हेरीडिटास (Heredities) से हुई है ।
शाब्दिक आधार पर आनुवंशिकता का अर्थ व्यक्तियों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरन्तर संचरित होने वाले बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों से है । इस तथ्य के अनुसार प्रजातिगत विशेषताएँ लक्षण (Symptoms) माता-पिता के अनुरूप बालकों में देखे जाते हैं ।
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रूथ बेनेडिक्स (Ruth Benedict) के अनुसार, ”वंशानुक्रम का अर्थ माता-पिता से उनकी सन्तानों में विभिन गुणों का संचरण (Transmission) होना है ।”
बील्स तथा हायजर (Billls & Haizer) के अनुसार, ”वंशानुक्रम का अर्थ साधारणतया उस प्रक्रिया से है, जिसके अनुसार कुछ वस्तुएँ अपने ही समान वस्तुओं को जन्म देती हैं ।”
बेकन (Bacon) के अनुसार, ”दो पीढ़ियों को जोडने वाली शृंखला को हम वंशानुक्रमण कहते हैं ।”
थॉमसन (Thomson) ने कहा है, “वशानुक्रम आगामी पीढ़ियों के बीच उत्पत्ति सम्बन्धी सम्बन्ध समझने के लिए एक सुविधाजनक शब्द है ।”
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जिस्वर्ट (Gisbert) ने वंशानुक्रम के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है, कि ”प्राकृतिक रूप से विभिन्न पीढ़ियों का प्रत्येक कार्य माता-पिता से अपने बच्चों मे जैविक और मानसिक विशेषताओं के रूप में संचालित होना ही वंशानुक्रम है ।”
इस कथन द्वारा यह स्पष्ट होता है, कि माता-पिता से बच्चों में शारीरिक गुणों के ही संचारित होने की सम्भावना नहीं होती बल्कि मानसिक गुण भी इसी प्रक्रिया के द्वारा सचरित होते हैं, तथा आनुवाशिकता अथवा वंशानुक्रम वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक अपने माता-पिता की विशेषताए प्राप्त करता है ।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आहगर पर यह धारणा बना लेना अनुचित होगा कि बच्चे को माता-पिता की सम्पूर्ण विशेषताएँ आनुवंशिक प्रक्रिया में वाहकाणुओं (Genes) द्वारा प्राप्त हो जाती हैं । गर्भाधान काल में जीन्स भिन्न-भिन्न प्रकार से संयुक्त होते हैं ।
यह भिन्नता का नियम (Law of Variation) है । प्रत्यागमन नियम (Law of Regression) के अनुसार प्रतिभा-सम्पन्न माँ-बाप की सन्तान मन्द बुद्धि की हो सकती है । यदि बालक मूल रूप से माता-पिता की कुछ-विशेषताएं प्राप्त करता है, तो वह जीन्स के कारण ही सम्भव हो पाता है ।
अत: स्पष्ट है कि आनुवांशिकता के वाहक जीन्स होते हैं । मानव शरीर लाखों कोष्ठों अथवा कोशिकाओं से निर्मित होता है । जैसे-जैसे शारीरिक रचना का विकास होता है, इन कोशिकाओं की संख्या में भी वृद्धि होती है । ये कोष्ठ आधे माता एवं आधे पिता से प्राप्त होते हैं । अपनी प्रकृति से यह कोष्ठ अनेक रासायनिक पदार्थों का एक बहुत छोटा-सा मिश्रण है ।
जिसे दो भागों में बाँटा गया है:
(i) कोशारस अर्द्ध-द्रव एवं चिपचिपा होता है, जबकि कोष केन्द्र एक बुलबुले की तरह कोशारस में विद्यमान रहता है ।
विदित हो कि जीव-निर्माण प्रक्रिया में दो आधे-आधे कोष्ठों का संयोजन रहता है:
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एक भाग को प्रकोष्ठ (Sperm Cell) कहते हैं, तथा दूसरे भाग को अण्डाकोष्ठ (Egg Cell) कहते हैं । अण्डाकोष्ठ में मादा का रज एवं शुक्रकोष्ठ में पिता का वीर्य होता है ।
इसको गुणसूत्र के अन्तर्गत समझा जा सकता है:
गुणसूत्र (Chromosome):
गुणसूत्र शरीर के आनुवंशिक तत्व हैं । ये गुणसूत्र प्रत्येक कोशिका के केन्द्र में निहित होते हैं, तथा प्रत्येक केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या अलग किन्तु प्रत्येक जीवित प्राणी में स्थिर होती है । युग्मक कोशिकाओं में 23 गुणसूत्र पाये जाते हैं, यानि कि एक अण्डागुण कोशिका तथा एक शुक्राणु कोशिका के मिलने से एक नयी पीढी का जन्म होता है ।
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गर्भधारण काल में जीव माता-पिता से 46 गुणसूत्र वशानुक्रम से प्राप्त करता है, यानि कि 23 माता एवं 23 पिता से प्राप्त करता है । पिता की शुक्राणु कोशिका माता की अण्डाणु कोशिका से एक महत्वपूर्ण पहलू में भिन्न होती है । शुक्राणु कोशिका का वा गुणसूत्र या तो अंग्रेजी वर्णमाला के बडे अक्षर X अक्षर की भांति या बडे अक्षर Y अक्षर की भांति होता है ।
यदि X की भांति शुक्राणु कोशिका, अण्डाणु कोशिका का निषेचन करती है, तो निषेचित अण्डाणु कोशिका में 23 वें जोड़े में XX गुणसूत्र होंगे एवं सन्तान पुत्री होगी । दूसरी ओर यदि Y की भांति शुक्राणु कोशिका अण्डाणु कोशिका का निषेचन करेगी तो 23 वें जोड़े में XY गुणसूत्र होंगे तथा सन्तान पुत्र के रूप में होगी । विदित हो मानव जीन डी.एन.ए (DNA-डी आक्सीराइवोन्यूक्तिाक एसिड) नामक पदार्थ से बने होते हैं ।
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गुणसूत्रों में जो दाने से प्रतीत होते हैं, इन्हें जीवशास्त्र में वाहकाणु अथवा जीन (Genes) कहा जाता है । प्रत्येक गुणसूत्र में हजारों वाहकाणु चारों ओर से चिपटे रहते हैं । इनकी संख्या लाखों हो सकती है । वाहकाणु इतने सूक्ष्म होते हैं, कि सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से भी इनको देखना सम्भव नहीं हो पाता । यही वाहकाणु बच्चों की सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक विशेषताओं का निर्माण करते हैं ।
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शरीर के प्रत्येक कार्य के लिए जिन रासायनिक पदार्थों एन्नाइम की आवश्यकता होती है । उनका निर्माण इन वाहकाणुओं द्वारा ही होता है । इस प्रकार मनुष्य में जो गुण और अवगुण हैं, वे सब विभिन्न वाहकाणुओं का संचरण (Transmission) होने से ही वंशानुगत विशेषताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती हैं ।
मेण्डल (Mendel) का सिद्धान्त:
वंशानुक्रम के सम्बन्ध में मेण्डल का सिद्धान्त प्रमुख है । यह सामान्यतया विश्वास है, कि गोरे माता-पिता की सन्तान गोरी और काले माता-पिता की सन्तान काली होगी । यदि माँ का रंग काला है तो बच्चों का रंग इन दोनों का मिश्रण अर्थात् सांवला होगा । इस भ्रान्ति को दूर करने के लिए मेण्डल नामक एक आस्ट्रियन पादरी ने महत्वपूर्ण खोज की ।
मेण्डल की खोज मटर के दानों पर किये गये परीक्षण पर आधारित थी ।
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आनुवंशिकता के अर्थ को समझने के पश्चात् व्यवहार की वातावरण सम्बन्धी विचारधारा को भी समझना श्रेष्ठ होगा । अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि होती है, कि बालक के विकास में वंश परम्परा के समलिंगी जुड़वाँ बच्चों को विभिन्न प्रकार के वातावरण में रखकर देखा कि उनके विकास में अन्तर आ जाता है ।
मैककेण्डलस महोदय के अनुसार यदि एक बालक को घर का वातावरण न मिले तो उसका बौद्धिक विकास कम होगा । जिंक महोदय ने ऐसे तीन बालकों का वर्णन किया है, जिन्होंने अपना प्रारम्भिक जीवन जानवरों या असभ्य जंगलियों के साथ व्यतीत किया था । इनमें दो बालिकाओं का वर्णन विशेष रूप से मिलता है, जिनको बहुत छोटी आयु में भेडिए उठा ले गये थे ।
जब वे दो एवं आठ वर्ष की हुईं तब उन्हें भेड़ियों की मांद से छुड़ाया गया इनमें से छोटी बालिका की तो घर आकर कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गयी, जबकि बड़ी बालिका अठारह वर्ष तक जीवित रही और 10 वर्ष में वहमात्र खाना खाने की आदत तथा कपड़े पहनना ही सीख पाई । इस प्रकार उक्त तथ्य इस बात की ओर संकेत करते हैं, कि बालक के विकास में वातावरण का महत्वपूर्ण स्थान है ।
इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक वातावरण भी बालक के विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है । मनोवैज्ञानिक वातावरण के अन्तर्गत परिवार, समाज तथा विद्यालय बहुत महत्वपूर्ण हैं । परिवार के सदस्यों के व्यवहार का बालक पर बहुत प्रभाव पड़ता है ।
विद्यालय का वातावरण भी विकास में महत्वपूर्ण योगदान करता है । इसके अन्तर्गत विद्यालय की स्थिति, शिक्षकों का व्यवहार, खेलकूद, पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आते हैं, जो बालक के विकास को प्रभावित करते हैं ।
हटेकर के अनुसार, ”वातावरण वह है, जिससे सम्पर्ण प्रभाव पड़ता है तथा जो गर्भधारण के समय से ही व्यक्ति के स्वरूप प्रदान कर चुका होता है ।”
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जेम्स रॉस का कथन है कि, ”वातावरण वे बाह्य व्यवहार हैं, जो हमें प्रभावित करते हैं ।”
बोरिंग के अनुसार, ”किसी व्यक्ति के पर्यावरण के अन्तर्गत वे सभी व्यवहार एवं उत्तेजनाए आती हैं, जिन्हें वह गर्भधारण मृत्यु तक प्राप्त करता हे ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वातावरण बालक के विकास में गर्भधारण की अवस्था से ही प्रभाव डालता । हमारे शरीर के बाहर जो भी वस्तु हमारे शरीर को प्रभावित करती है, वातावरण के अन्तर्गत आती है । वातावरण के प्रकार है: भौगोलिक, भौतिक तथा मनोवैज्ञानिक ।
भौगोलिक वातावरण के अन्तर्गत बाह्य दशाएँ आती हे, भौतिक वातावरण में वस्तु तथा उनका प्रयोग वातावरण में सभी भौतिक मानसिक दशाएँ आती है, जिनसे मनुष्य का व्यवहार प्रभावित होता है ।