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Here is an essay on ‘Diseases’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on Diseases
Essay # 1. टायफाइड (Typhoid):
टायफाइड रोग बच्चों में यह बीमारी ज्यादा होती है । यह सामान्य संक्रामक रोग है । संक्रमित टायफाइड के लिए जिम्मेदारी सूक्ष्मजीव भोजन जल तथा दूध के उत्पाद, बिना धुली सब्जी खाने से यह बीमारी होती है । टायफाइड सूक्ष्मजीव सालमोनेला टाइफी जीवाणु के संक्रमण से होता है । टायफाइड से छोटी आंत प्रभावित होती है ।
लक्षण:
(a) प्रथम सप्ताह में प्रतिदिन सिरदर्द तथा बुखार बढ़ता जाता है ।
(b) दूसरे सप्ताह में बुखार अधिक बढ जाता है।
(c) तीसरे और चौथे सप्ताह में बुखार कम हो जाता है।
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(d) सिर दर्द, शरीर में दर्द, कब्ज, धीमाहदय स्पंदन, जीभ के ऊपर मैल की परत जम जाती है ।
(e) उदर के ऊपरी भाग में लाल चकते बन जाते हैं ।
बचाव:
(a) भोजन एवं जल को शुद्ध रखना चाहिए ।
(b) मल व अन्य दूषित पदार्थों का सही स्थान पर विसर्जन करना चाहिए ।
(c) भोजन को मक्खियों से बचा कर रखना चाहिए ।
(d) टेब (टाइफाइड पेरा A तथा B) टीका लगवाना चाहिए ।
नियंत्रण:
(a) रोगी को बुखार आने पर पूरा आराम करने दे ।
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(b) प्रतिजैविकों से उपचार करना चाहिए ।
(c) चिकित्सक की निगरानी में दवाइयाँ देना चाहिए ।
Essay # 2. पोलियो (Polio) :
इस बीमारी को पोलिओमालाइटिस भी कहते हैं । पोलिओ सूक्ष्मजीव पोलियोवायरस से फैलता है ।
प्रभावित होने वाले अंग:
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मेरूरज्जू एवं मस्तिष्क, पैरों का पक्षाघात हो सकता है ।
लक्षण:
(a) छ: महीने से 3 वर्ष के बच्चों को पोलियो होता है ।
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(b) बुखार आता है ।
(c) मांस पेशियाँ सिकुड़ कर कार्य करना बंद कर देती है ।
(d) प्रभावित हाथ या पैर का विकास धीमा हो जाता है ।
(e) सिर दर्द, उल्टी, गर्दन में दर्द होता है ।
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(f) तंत्रिका तंत्र के नष्ट हो जाने से प्रभावित हाथ या पैर कार्य करना बंद कर देते हैं ।
बचाव:
पोलियो की दवा पिलवाकर छोटे बच्चों को पोलियो होने से बचा सकते हैं ।
नियंत्रण:
टांगों के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी भी लाभदायक होती है ।
Essay # 3. रेबीज (Rabies):
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रेबीज को जलातंक भी कहते हैं । यह संक्रमित कुत्तों, बिल्ली, बंदर, लोमड़ी, भेड़िया, नेवला के काटने से होने वाला रोग है । इनके लार में रेबीज रोग के सूक्ष्म जीव होते हैं । यह रेबीज वायरस (विषाणु) से होता है ।
लक्षण:
(a) पानी से डर लगता है ।
(b) तेज बुखार व सिर दर्द
(c) बैचेनी, कंठ का अवरुद्ध होना ।
बचाव:
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(a) आवारा कुत्तों तथा बिल्लियों की रोकथाम ।
(b) पालतू तथा आवारा जानवरों को रोग से बचाव के टीके लगवाना ।
नियंत्रण:
(a) रेबीज ग्रस्त जानवरों को मार देना चाहिए ।
(b) घाव को पानी तथा साबुन से धोना चाहिए ।
(c) यह भयानक बीमारी है, जिसमें मृत्यु का भय रहता है ।
(d) डॉक्टर की देखरेख में एण्टीरेबीज के टीके लगवाना चाहिए ।
Essay # 4. छोटी माता – चिकनपॉक्स (Chicken Pox):
यह बीमारी वेरीसेला जोस्टर नामक विषाणु से होती है । यह ज्यादातर 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होती है । यह रोग प्रदूषित वस्तुओं से फैलता है । यह बीमारी एक बार जिसको हो जाती है उसके शरीर में इस रोगी के प्रतिरक्षा उत्पन्न हो जाती है । दूसरी बार वायरस का संक्रमण होने पर व्यक्ति बीमार नहीं होता है ।
लक्षण:
(a) हल्का या मध्यम बुखार आता है ।
(b) पीठ में दर्द घबराहट रहती है ।
(c) पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं ।
(d) दाने पहले गले पर फिर चेहरे पर और फिर पैरों पर फैलते हैं ।
(e) 4 से 7 दिन बाद दानों पर पपड़ी बनती है ।
बचाव:
रोगी से अन्य लोगों को दूर रखें ।
नियंत्रण:
कुछ खास तरह से तैयार मल्हम या नारियल का तेल दाने पर लगाने से कुछ आराम मिलता है ।
Essay # 5. जुकाम (Common Cold):
सामान्यत: सर्दी जुकाम से आप सभी परिचित हैं । क्योंकि कभी न कभी आपको भी सर्दी हुई होगी । यह रोग राइनोवायरस (विषाणु) से होने वाला रोग है । रोगी द्वारा खांसने और छींकने से वायु में कफ की बूंदों से फैलता है ।
प्रभावित होने वाले अंग:
श्वासनलिका की ऊपर की श्लेष्मा झिल्ली, नाक तथा गला ।
लक्षण:
(a) आँखों तथा नाक से तरल पदार्थ निकलता है ।
(b) आँखों में जलन होती है ।
नियंत्रण:
(a) खांसते, छींकते समय मुँह ढंकना चाहिए ।
(b) चिकित्सक से पूछ कर एंटीबायोटिक लें ।
(c) विटामिन C की मात्रा का प्रयोग बढ़ा देना चाहिए ।
(d) भाप लेना चाहिए ।
Essay # 6. दस्त एवं पेचिस (Diarrhoea):
यह जीवाणु ई-कोलाई द्वारा फैलता है । विषाक्त भोजन से भी डायरिया दस्त हो सकता है । जो किसी जीवाणु द्वारा हो सकता है । अमीबिक पेचिस एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका से होता है, इसमें मल के साथ चिपचिपा पदार्थ स्रावित होता है ।
पेचिस एक बीमारी है जिसमें कई प्रकार के संक्रमण शामिल हैं इसमें उल्टी भी होती है । दूषित भोजन, जल आदि के द्वारा यह रोग फैलता है । इस रोग में मुख्य रूप से आँतों पर संक्रमण होता है ।
लक्षण:
i. रोगी को बार-बार पतले दस्त होते हैं ।
ii. कभी-कभी उल्टियाँ भी होती हैं ।
iii. शरीर में पानी की कमी हो जाती है । चेहरा मुरझा जाता है ।
iv. पेट दर्द तथा सिर दर्द भी हो सकता है ।
v. रोगी को बहुत कमजोरी आ जाती है ।
vi. तेज प्यास लगती है ।
नियंत्रण:
i. सफाई पर विशेष ध्यान दें ।
ii. रोगी को थोडे- थोड़े समय के अंतराल में जीवन रक्षक घोल या O.R.S. पिलाते रहें ।
iii. पानी उबाल कर, छानकर पिलाएँ ।
iv. फलों को गर्म पानी से धोकर खिलाएँ ।
v. सब्जियों को गर्म पानी से साफ करके पकाएँ ।
vi. खाने-पीने की वस्तुओं को ढांक कर रखें ।
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vii. रोगी के मल तथा उल्टी को तुरंत नष्ट करें । इसे कदापि खुला न छोड़े ।
viii. शौचालयों को साफ रखें ।
Essay # 7. मलेरिया (Malaria):
यह संसार के प्रत्येक भाग में पाई जाने वाली संक्रामक बीमारी है । यह मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से होती है क्योंकि इसका कारक प्लाज्योडियम प्रोटोजोआ इसी मच्छर के शरीर में परजीवी के रूप में रहता है ।
लक्षण:
i. इसमें तेज ठंड के साथ बुखार आता है ।
ii. इसमें बुखार एक दिन छोड़कर आता है ।
iii. पूरे शरीर में दर्द होता है ।
iv. रोगी को प्यास अधिक लगती है चेहरा लाल हो जाता है ।
v. लीवर तथा प्लीहा में सूजन आ जाती है ।
नियंत्रण:
i. इस बीमारी के नियंत्रण के लिए घर के आसपास के मच्छरों को नष्ट कर देना चाहिए ।
ii. घर के आसपास पानी जमा न होने दें ।
iii. मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए, जिससे सोते समय मच्छर न काट सके ।
iv. मलेरिया के लक्षण दिखते ही खून की जांच करवा कर चिकित्सक की सलाह पर दवा लेना चाहिए ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की सहायता से राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन के अंतर्गत बुखार के शिकार प्रत्येक रोगी के रक्त की जांच की जाती है और उसे दवाई मुफ्त में दी जाती है ।