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Read this article in Hindi to learn about the pollution related diseases.
प्रदूषण आज की प्रमुख समस्या है । प्रदूषण से पेड़-पौधों एवं जन्तुओं को अनेक रोग होते हैं । आप अपने क्षेत्र में जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण से होने वाले प्रभावों का अवलोकन करें ।
यदि आपके गाँव/शहर में या आसपास कोई कारखाना है तो वहाँ काम कर रहे मजदूरों में अधिकांश रूप से होने वाले रोग/रोगों का पता लगाएँ तथा उस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी संबंधित लोगों (जैसे चिकित्सक) से लें । इसी प्रकार कारखाने के आसपास एवं उससे दूर जंगल में पेड़-पौधों के रंग, रूप, वृद्धि में कोई अन्तर दिखे तो पता लगाएँ कि यह अन्तर क्यों हैं ।
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शहरों में तो व्यस्त सड़कों के दोनों बाजुओं में लगे पेड़-पौधों की पत्तियों पर जमा धूल देखी जा सकती है । इस कारण से पौधे के प्रकाश-संश्लेषण करने की क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, फलस्वरूप उनकी वृद्धि, पुष्प आने में देरी या कोई अन्य प्रभाव हो सकता है ।
यहाँ नमूने के तौर पर आपको मनुष्य एवं पादपों में प्रदूषण से होने वाले दो-दो रोगों की जानकारी दी जा रही है । आप उपरोक्त लिखित अवलोकनों के आधार पर कोई अन्य रोगों का पता लगाएँ एवं उसकी रिपोर्ट भी तैयार कर सकते हैं ।
1. मनुष्यों में प्रदूषण से होने वाले रोग:
(i) अमीबिक पेचिश (Amoebic Dysentery):
यह रोग दूषित जल (contaminated water) के सेवन से होता है । इस रोग का कारण एन्टअमीबा हिस्टोलाइटिका (Entamoeba histolytical) नामक एक कोशिकीय परजीवी प्रोटिस्ट हैं जो मनुष्य की छोटी आँत में रहते हैं । ये परजीवी छोटी आंत की म्यूकस मेम्ब्रेन को क्षति पहुँचाते हैं तथा कभी-कभी रक्तवाहिनियों के माध्यम से लिवर (यकृत) में भी पहुँच जाते हैं ।
आंत की म्यूकस मेम्ब्रेन को क्षति होने से उसमें से म्यूकस के साथ रक्त निकलकर मल के साथ आने लगता है अत: उन परजीवियों की उपस्थिति से अमीबिक पेचिश रोग होता है जिसमें पतले दस्त में खून और आँव (mucous) भी बाहर आता है । इस रोग में पेट में मरोड़े (दर्द) एवं अपच भी होता है ।
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परजीवी कुछ समय पश्चात् जनन हेतु पुटी (cyst) से घिर जाते हैं । ये पुटिया रोगी के मल के साथ बाहर आती हैं एवं नदी-नालों एवं तालाब के जल में मिलकर जल-प्रदूषित कर देती हैं । रोगी यदि शौच के बाद ठीक से साबुन द्वारा हाथों की सफाई ना करे तो उसके नाखूनों के नीचे पुटिया रह जाती हैं जो पेय-जल या खाद्य-पदार्थो में मिलकर पुन: रोगी अथवा घर के अन्य स्वस्थ व्यक्ति की आहारनाल में पहुँच कर उसे भी रोग से संक्रमित कर देती हैं ।
कई बार शहरों की गटरें (जिसमें मल-मूत्र वाहित होता है) पेयजल की सप्लाय लाइन से मिल जाती हैं एवं इस तरह से जल प्रदूषित कर देती हैं । आप अपने आसपास इस रोग से पीड़ित रोगियों की जानकारी लेकर पता करें कि उनके आसपास की साफ-सफाई की क्या व्यवस्था है ।
(ii) श्वांस संबंधी रोग:
प्रदूषित वायु एवं धूल के कणों से अनेक श्वास संबंधी रोग हो सकते हैं । उनमें दमा (asthma) एवं एलर्जी प्रमुख हैं । वाहनों के ईंधन (सीसायुक्त पेट्रोल) के अपूर्ण दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) बनती है । यह गैस एवं स्टील उद्योगों, तेल-शोधक कारखानों, मोटर वाहनों तथा सिगरेट के धुएँ में भी होती है ।
यह अत्यन्त विषैली गैस है । सांस के द्वारा फेफड़ों में जाकर यह गैस रक्त के हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर श्वसन क्रिया में रूकावट डालती हैं । इससे थकावट, आलस्य, सिरदर्द, दृष्टिदोष जैसे लक्षण रोग को होते हैं । औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को श्वास संबंधी रोग अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में अधिक होते हैं । इस संबंध में आप एक सर्वे भी कर सकते हैं ।
2. पौधों में प्रदूषण से होने वाले रोग:
(i) क्लोरोसिस (Chlorosis):
अनेक उद्योगों में Cu, Zn, Pb, Ni एवं Fe के अयस्कों का उपयोग होता है, इन तत्त्वों में उपस्थित सल्फर के ऑक्सीकरण से उद्योगों की चिमनी से निकलने वाले धुएँ में अत्यधिक मात्रा में SO2 वायुमंडल में मिलती जाती है ।
मोटर वाहनों, कोयले के दहन एवं तेलशोधक कारखानों से भी SO2 गैस निकलती है । इस गैस के वातावरण में मिलने से SO3, HSO3 एवं H2SO4 जैसे पदाथों का निर्माण होता है । ये पदार्थ पौधों की कोशिकाओं में प्रवेश कर उनमें अनेक हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं ।
SO2 की सांद्रता से पौधों की पत्तियों का क्लोरोफिल नष्ट होने लगता है जिसे क्लोरोसिस रोग कहते हैं । इस कारण से पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं । धीरे-धीरे कोशिकाएँ टूटने लगती हैं एवं पौधों के प्रभावित भाग या पूरा पौधा मर सकता है । तब इस प्रभाव को नेक्रोसिस (nacrosis) कहते हैं ।
(ii) आम का ब्लैक टिप रोग (Black Tip of Mango):
वायुमंडल में SO2 की अधिकता के प्रभाव से होने वाली एक अन्य बीमारी में आम के शीर्ष का काला पड़ना है । कभी-कभी पत्तियों के शीर्ष भी काले पड़ जाते हैं । इस रोग को इसीलिए आम का ब्लैक टिप रोग कहते हैं । इस रोग में भी अन्तत: काले पड़े हुए भाग की कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है अत: उसे नेक्रोटिक प्रभाव कह सकते हैं ।
उक्त उल्लेखित दोनों रोग SO2 से प्रदूषित वायु से तो होते ही हैं किन्तु रोगजन्य कवकों या वाइरल संक्रमण से भी हो सकते हैं । आप अपने आसपास के व्यस्त एवं प्रदूषित क्षेत्रों के पेड़-पौधों में उक्त रोगों के लक्षणों को देखने का प्रयास करें ।